love
The five poems in this collection, published first on Facebook between 2010 & 2015, strung together through a common thread, present the first volume of poems on love.
Love in all these poems, except for miracle, is framed within the powerful emotion of desire. The enticement of desire, the high that it offers, the paralysis it casts and the anxiety of the moment when I meet what I desire.
miracle, on the other hand, is an expression of the transcendence of desire: the fruits of the union.
सहारा
इन नज़रों ने काई धडकनों को सहारा दिया
कई अन्जाने कुछ पहचाना इशारा किया
खालि करवटों में भरि ख्वाहिशों का नज़ारा किया
जी न भरा तो दम भर खालि आहों से गुज़ारा किया
कारवां-ए-बेखुदी ख़ास बदनाम हमारा हुआ
जो सहमि कभी सांस .गमे-नाम तुम्हारा लिया
मायूसी का उमड़ता सैलाब किनारा किया
एह्सासे-खुदी का इम्तेहाँ दुबारा दिया
काई अन्जाने इक पहचाना जो इशारा किया
इन नज़रों ने इक बेपन्हा को सहारा दिया
May 24, 2010
सायों की सियाही
सायों की सियाही में डुबा
आहटों पे नाम जोड़ना
ये बहाना हो गया
ख़यालों से छाँट-छाँट के
ख्वाहिशों के हिसाब मोड़ना
अब मेरा क्या खो गया
उम्मीदों की किताब से मिटा
करवटों के ईनाम तोड़ना
जो मेरा था सो गया
बादलों से काट-काट के
कागज़ों पे नाम जोड़ना
ये मुझे क्या हो गया
May 24, 2010
miracle
she looks
a poem gazing from emptiness
through strings of black beads
melancholy
he cries
a sweet sorrowful song
lungs full of words yet unknown
joy
their lips quivering
fragile lives gasping for love
momentousness to be forgotten
miracle
March 4, 2011